रक्षाबंधन 2023: महत्व और क्या करें
रक्षाबंधन 2023 के दिन सूर्योदय से पूर्व भद्रा समाप्त होगी। जानें इस खास दिन के महत्व के साथ-साथ रक्षाबंधन पर क्या करें और क्या न करें। "रक्षाबंधन 2023"
7/25/20251 min read


भद्रा क्या है और इसका धार्मिक महत्व
भद्रा एक महत्वपूर्ण तिथि है, जिसे हिन्दू पंचांग में विशेष ध्यान से देखा जाता है। यह तिथि विभिन्न महीनों में कई बार आती है और इसे आमतौर पर शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नहीं माना जाता है। भद्रा का समय ऐसा होता है जब चन्द्रमा की स्थिति कुछ विशेष राशियों में होती है, जो उसके ग्रहण और दुष्प्रभावों को दर्शाती है।
धार्मिक दृष्टिकोण से भद्रा का बड़ा महत्व है। यह माना जाता है कि इस काल में कोई भी महत्वपूर्ण कार्य, जैसे शादी, गृह प्रवेश या अन्य शुभ कार्य, नहीं करना चाहिए। कुछ शास्त्रों के अनुसार, भद्रा के दौरान किए गए कार्य में असफलता का डर होता है, जिससे परिवार में अशांति उत्पन्न हो सकती है। इस अवधि में शुभ कर्म करने से लाभ के बजाय हानि होने की संभावना अधिक होती है, इसलिए साधकों और भक्तों को इससे बचना चाहिए।
इसके अलावा, भद्रा का राशियों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। ज्योतिष के अनुसार, जब सूर्य और चन्द्रमा किसी विशेष राशियों में होते हैं, तब भद्रा का प्रभाव प्रमुख होता है। भद्रा का प्रभाव केवल व्यक्तिगत जीवन पर ही नहीं, बल्कि समाज पर भी पड़ता है। यह सामाजिक गतिविधियों और त्योहारों के आयोजन को प्रभावित कर सकता है, जिस कारण से बहुत से लोग इस समय का ध्यान रखते हैं। हिन्दू धर्म में भद्रा का स्थान एक अनुसाशित विचारधारा को दर्शाता है, जो जीवन में संयम और समयानुपाती कार्यों के महत्व को उजागर करता है।
रक्षाबंधन का पर्व और इसकी परंपरा
रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं, और उनके लिए लंबी उम्र, सुख-सौभाग्य और सुरक्षा की कामना करती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार देकर उनकी रक्षा का वचन देते हैं। इस तरह यह पर्व न केवल पारिवारिक बंधनों को मजबूत करता है, बल्कि समाज में भाईचारे और एकता को भी बढ़ावा देता है।
रक्षाबंधन की परंपरा का इतिहास प्राचीन भारतीय ग्रंथों से जुड़ा है। कई किंवदंतियाँ इसके महत्त्व को दर्शाती हैं। उदाहरण के लिए, एक प्रचलित कथा के अनुसार, द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को राखी बांधी थी और जब द्रौपदी के सम्मान को खतरा हुआ, तो भगवान कृष्ण ने उनकी रक्षा की। इसी प्रकार, अनेक धार्मिक और ऐतिहासिक घटनाएँ रक्षाबंधन के महत्व को रेखांकित करती हैं। इस दिन को मनाने के विभिन्न तरीके, स्थानों के अनुसार बदलते हैं। कुछ क्षेत्रों में इसे भाई-बहन की स्नेह-भावना का पर्व कहा जाता है, जबकि अन्य जगहों पर इसे विशेष रूप से पारिवारिक मेल-मिलाप का समय समझा जाता है।
आज के दौर में, रक्षाबंधन केवल पारिवारिक बंधनों को ही नहीं, बल्कि दोस्तों और समाज के अन्य सदस्यों के साथ भी मनाया जाता है। यह पर्व समुदायों को एक सूत्र में बांधने का कार्य करता है और भाई-बहन के रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है। इस प्रकार, रक्षाबंधन का पर्व न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक स्तर पर भी महान महत्व रखता है, जो सदियों से चला आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा।
सूर्योदय से पूर्व भद्रा का समाप्त होना
रक्षाबंधन का त्योहार हिंदू संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, और इस दिन भद्रा का समय विशेष ध्यान देने योग्य होता है। भद्रा, जो एक प्रकार की अशुभ अवधि मानी जाती है, रक्षाबंधन के दिन सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही है। यह तथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारतीय परंपरा में पूजा या अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए शुभ समय का चयन किया जाता है। सूर्योदय से पहले भद्रा के समाप्त होने के प्रभाव से भक्तों को अपनी श्रद्धा और विश्वास के अनुसार सही समय पर रक्षाबंधन की रस्में सम्पन्न करने का अवसर मिलता है।
एक सामान्य धारणा के अनुसार, भद्रा के दौरान किसी भी प्रकार की महत्वपूर्ण गतिविधियों का निष्पादन करना अशुभ माना जाता है, जिससे लोग इसे टालते हैं। रक्षाबंधन के दिन, जब भद्रा समाप्त होती है, तो यह एक शुभ मुहूर्त बनाता है, जो भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक होता है। भक्तजन इस विशेष क्षण का लाभ उठाकर रक्षाबंधन की पूजा सही समय पर संपन्न करते हैं, जिससे उनकी भक्ति और प्रेम दोनों की अभिव्यक्ति होती है।
भद्रा के खत्म होने के बाद सूर्योदय का समय न केवल पूजा विधियों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, बल्कि भक्ति के साथ-साथ परिवार में प्रेम और समर्पण को भी बढ़ावा देता है। कई लोग अपनी पारंपरिक पूजा के अनुसार सूर्योदय के समय भाई की कलाई पर राखी बांधने का कार्य करते हैं। इस अनुष्ठान का उद्देश्य भाई-बहन के रिश्ते में सुधार और सुरक्षा की कामना करना होता है। इसलिए, भद्रा का समय और सूर्योदय का महत्व रक्षाबंधन के दिन विशेष रूप से सामने आता है, जब लोग अपने परिवार और प्रियजनों के लिए शुभता और खुशी का प्रतीक मानते हैं।
भद्रा समाप्त होने के बाद रक्षाबंधन मनाने का सर्वोत्तम समय
रक्षाबंधन एक प्राचीन भारतीय त्योहार है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। यह त्योहार हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष, भद्रा, जिसे एक अशुभ काल माना जाता है, सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो जाएगी। सही समय पर रक्षाबंधन मनाना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह भाई-बहन के संबंध को मजबूत बनाता है। भद्रा समाप्त होने के बाद का समय, विशेष रूप से रक्षाबंधन आयोजन के लिए शुभ माना जाता है।
भद्रा समाप्त होने के बाद, रक्षाबंधन मनाने का सबसे अच्छा समय उपरोक्त समय के अनुसार निर्धारित किया जा सकता है। परंपरा के अनुसार, भाईयों द्वारा अपनी बहनों को रक्षासूत्र बांधने का यह समय बेहतर रहता है। सही समय पर यह कार्य करने से न केवल परिवार का सौहार्द बढ़ता है, बल्कि यह पारिवारिक संबंधों को और अधिक मजबूत बनाने में भी सहायक होता है। समय निर्धारण के लिए कुछ उपाय और सुझाव उपयुक्त हैं।
रक्षाबंधन की तैयारी करते समय, यह सुनिश्चित करें कि आप भद्रा समाप्ति के बाद का समय उपयुक्त चुनें। इस प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए, घर के बड़े सदस्यों से सलाह लें या धार्मिक पंचांग से अवलोकन करें। कई लोग समय की जानकारी के लिए दिवस की स्थानीय समय और मुहूर्त का अध्ययन करना पसंद करते हैं। इसी प्रकार, रक्षाबंधन का महत्व बढ़ाने के लिए, भाई-बहन दोनों को एक-दूसरे के प्रति सम्मान और प्यार व्यक्त करना चाहिए। यह त्योहार केवल एक रस्म नहीं है, बल्कि भाई-बहन के बीच के रिश्ते में नये अध्याय की शुरुआत भी है। इस प्रकार, भद्रा समाप्त होने के बाद रक्षाबंधन मनाने का सही समय चुनना, इस पवित्र अवसर की गरिमा को बरकरार रखता है।
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